उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने योग गुरु बाबा रामदेव (Baba Ramdev) को पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurveda) के 'भ्रामक' विज्ञापनों के मामले में उनके खिलाफ अदालत की अवमानना कार्रवाई के तहत जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल नहीं करने पर व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का मंगलवार को निर्देश दिया।न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण (Acharya Balkrishna) के जवाब दाखिल करने में विफलता पर नाराजगी व्यक्त की और उनके बारे में कहा कि वे विज्ञापन के मामले (advertisement case) में प्रथम दृष्ट्या दोषी करार दिए गये थे।
इस पर उनका पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कड़ी आपत्ति जताई। पीठ ने रोहतगी से कहा, "आप हमारे आदेशों की अवहेलना कैसे कर सकते हैं? पहले हमारे हाथ बंधे हुए थे।" पीठ ने उनसे कहा, "आप नोटिस का जवाब नहीं दे रहे और प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई थी।" शीर्ष अदालत ने रोहतगी की राहत देने संबंधी तमाम दलीलें खारिज करते हुए कहा कि आदेश में संशोधन का कोई सवाल ही नहीं है।
शीर्ष अदालत ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association) की याचिका पर 29 फरवरी को सुनवाई करते हुए संबंधित कंपनी और उसके एमडी आचार्य बालकृष्ण को कारण बताओ अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा था कि पूरे देश को धोखा दिया जा रहा है। पीठ ने केंद्र सरकार (central government) को विज्ञापन मामले में कानून के अनुसार कार्रवाई नहीं करने लिए फटकार लगाई थी और कहा था कि चेतावनी के बावजूद भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने पतंजलि को बीपी, मधुमेह, अस्थमा और कुछ अन्य बीमारियों से संबंधित सभी विज्ञापन जारी करने पर अंतरिम रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने कथित तौर पर भ्रामक विज्ञापन जारी रखने के लिए पतंजलि आयुर्वेद और उसके प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण को अदालत की अवमानना का कारण बताओ नोटिस जारी किया था। पीठ ने कहा था कि अदालत बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को अवमानना कार्रवाई मामले में पक्षकार बनाएगी, क्योंकि दोनों की तस्वीरें विज्ञापन में हैं। शीर्ष अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को कई बीमारियों के इलाज के लिए उसकी दवाओं के विज्ञापनों में "झूठे" और "भ्रामक" दावे करने के लिए पिछले साल नवंबर में आगाह किया था
उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार की निष्क्रियता पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा था कि याचिका 2022 में दायर की गई थी। सरकार आंखें मूंद कर बैठी हुई है। दो साल तक इंतजार के बाद भी कानून के अनुसार कार्रवाई नहीं की गई। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपनी याचिका में एलोपैथी दवा को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए बाबा रामदेव और अन्य (पतंजलि आयुर्वेद) के खिलाफ कार्रवाई की गुहार लगाई थी।