उत्तर कांड
जब जीलक्ष्मण जी सीता जी को बाल्मीकि जी केआश्रम में छोड़ आए ।तब सीता जी गर्भवती थीं ।
कुछ समय उपरांत वशिष्ठ जी ने राम जी को अश्वमेघ यज्ञ का सुझाव दिया। अश्वमेघ यज्ञ के सुझाव पर राम जी ने वशिष्ठ जी से प्रश्न किया कि बिना पत्नी के अश्वमेध यज्ञ कैसे होगा तो वशिष्ठ जी ने कहा
" मत घबराबे रामचंद्र अटकर तें काम चला लिन्गें।
जज्ञ हेतु हे तपधारी सोने की सिया ए बना लिन्गे।"
अश्वमेध के यज्ञ के पश्चात
"अश्वमेघ के यज्ञ का घोड़ा दियो पठाय।
चरतबली के संग में हनुमत दिये भिजाय।
संग साथ में सैनिक दल भी विधिवत दिये लगाय ।
जैसे ही घोड़ा बाल्मीकि आश्रम के पास पहुंचा वहाँ सीता पुत्र लवकुश मिले उन्होनें घोड़ा पकड़ लिया चरत बोले ये घोड़ा क्यों पकड़ा जानते हो ये घोड़ा किसका है? लव कुश ने उत्तर दिया
" देख्यो जायगो घोड़ा बारो जब रखवारो आवेगो
जाकूं लगी मरास थूथरो आय हमसे तुरबाबेगो
बातन बातन बतगढ़ बढि गई और बातन में बढ़ गई रार
तीर तमंचन पै कर आइ गए होन लगी युध्द बौछार जो सर छूटें चरत बली के उन्हें सिया सुत जाएं बचाय
जो सर छूटें लवकुश के सेंटी फोरि निकल जाएं पार"।
ब्रह्मपाश में चरत बली ओर हनुमान जी लिये फंसा
तुरत उन्हें घोड़ा के संग माता के ढिंग लिये लिवाय "।
सीता जी हक बक रह गई और कहा बेटा ये तुमने क्या किया
" चाचा चरतबली हैं त्याहरे ब्रह्मपाश में क्यों धरे
हनुमत भैया हैं तुम्हारे ये बन्दी चों करे"।
बच्चे चुप रहे और दोनों को अयोध्या बापस भेज दिया वहाँ जाकर जब राम को बताया तो उन्होनें लक्ष्मण जी को बुलाया और आदेश दिया और कहा अब तुम जाओ और सीता जी व लवकुश को लेकर आओ ।लक्ष्मण ने आज्ञा पाकर प्रस्थान किया।
जब लक्ष्मण जी आश्रम पंहुचे, सीता जी के चरण स्पर्श किये, उन्होनें कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। बच्चे सब कुछ देख रहे थे, वे खड़े रहे।
डॉ अनामिका शर्मा